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आज का दौर

गुलजार साहब की यह कविता आज बहुत याद आ रही है...

*"बे वजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है"*
*"मौत से आँखे मिलाने की ज़रूरत क्या है"*

*"सब को मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल"*
*"यूँही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है"*

*"ज़िन्दगी एक नेमत है उसे सम्भाल के रखो"*
*"क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है"*

*"दिल बहलाने के लिये घर में वजह हैं काफ़ी"*
*"यूँही गलियों में भटकने की ज़रूरत क्या है"*


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