क्या संविधान लिखकर वाकई कोई कारनामा किया था बाबा साहेब ने?

 

क्या संविधान लिखकर वाकई कोई कारनामा किया था बाबा साहेब ने? चलो इसबार सच्चाई जान लेते हैं।👇


1895 में पहली बार बाल गंगाधर तिलक ने एक संविधान लिखा था। अब इससे ज्यादा मैं इस संविधान पर न ही बोलूँ वह ज्यादा बेहतर है, फिर 1922 में गांधीजी ने संविधान की मांग उठाई,  मोती लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और पटेल-नेहरू तक न जाने किन किन ने और कितने संविधान पेश किये। ये लोग आपस् में ही, एक व्यक्ति प्रारूप बनाता तो दूसरा फाड़ देता, दुसरा बनाता तो तीसरा फाड़ देता और  इस तरह 50 वर्षों में कोई भी व्यक्ति भारत का एक (संविधान) का प्रारूप ब्रिटिश सरकार के समक्ष पेश नही कर सके। 


उससे भी मजे की बात कि संविधान न अंग्रेजों को बनाने दिया और न खुद बना सके। अंग्रेजों पर यह आरोप लगाते कि तुम संविधान बनाएंगे तो उसे हम आजादी के नजरिये से स्वीकार कैसे करें। बात भी सत्य थी लेकिन भारत के किसी भी व्यक्ति को यह मालूम नही था कि इतने बड़े देश का संविधान कैसे होगा और उसमे क्या क्या चीजें होंगी? लोकतंत्र कैसा होगा? कार्यपालिका कैसी होगी? विधायिका व न्यायपालिका कैसी होगी? समाज को क्या अधिकार, कर्तव्य और हक होंगे आदि आदि.. 


अंग्रेज भारत छोड़ने का एलान कर चुके थे लेकिन वो इस शर्त पर कि उससे पहले तुम भारत के लोग अपना संविधान बना लें जिससे तुम्हारे भविष्य के लिए जो सपने हैं उन पर तुम काम कर सको। इसके बावजूद भी कई बैठकों का दौर हुआ लेकिन कोई भी भारतीय संविधान की वास्तविक रूपरेखा तक तय नही कर सका। यह नौटँकीयों का दौर खत्म नही हो रहा था,साइमन कमीशन जब भारत आने की तैयारी में था उससे पहले ही भारत के सचिव लार्ड बर्कन हेड ने भारतीय नेताओं को चुनौती भरे स्वर में भारत के सभी नेताओं, राजाओं और प्रतिनिधियों से कहा कि इतने बड़े देश में यदि कोई भी व्यक्ति संविधान का मसौदा पेश नही करता तो यह दुर्भाग्य कि बात है। 


यदि तुम्हे ब्रिटिश सरकार की या किसी भी सलाहकार अथवा जानकार की जरूरत है तो हम तुम्हारी मदद करने को तैयार है और संविधान तुम्हारी इच्छाओं और जनता की आशाओं के अनुरूप हो। फिर भी यदि तुम कोई भी भारतीय किसी भी तरह का संविधानिक मसौदा पेश करते हैं हम उस संविधान को बिना किसी बहस के स्वीकार कर लेंगे। मगर यदि  तुमने संविधान का मसौदा पेश नही किया तो संविधान हम बनाएंगे और उसे सभी को स्वीकार करना होगा। 


अब यह मत समझना कि आजकल जैसे कई लोग हंसी मज़ाक उड़ाने लगे तो कई संगठन संविधान बदलने की बातें करते हैं। वह दौर अलग था, लोग सड़कों पर भी अंग्रेजों के हुक्म से चलते थे और यदि अंग्रेज हमारे देश के संविधान को लिखते तो हम आजादी के बाद उसे संशोधित या बदलने की सोचते तो पहले आपको यह समझना आवश्यक है कि जब भी किसी देश का संविधान लागू होता है तो वह संविधान उस देश का ही नही मानव अधिकार और सयुंक्त राष्ट्र तथा विश्व समुदाय के समक्ष एक दस्तावेज होता है जो देश का प्रतिनिधित्व और जन मानस के अधिकारों का संरक्षण करता है। दूसरी बात किसी भी संविधान के संशोधन में संसद का बहुमत और कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की भूमिका के साथ समाज के सभी तबकों की सुनिश्चित एवं आनुपातिक भागीदारी भी अवश्य होती है। इसलिए फालतू के ख्याल दिमाग से हटा देने चाहिए। दुसरा उदाहरण।


जापान एक विकसित देश है। अमेरिका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी को परमाणु हमले से ख़ाक कर दिया था उसके बाद जापान का पुनरूत्थान करने के लिए अमेरिका के राजनेताओं, सैन्य अधिकारियों और शिक्षाविदों ने मिलकर जापान का संविधान लिखा था। फरवरी 1946 में कुल 24 अमेरिकी लोगों ने जापान की संसद डाइट के लिए कुल एक सप्ताह में वहां के संविधान को लिखा था जिसमे 16 अमेरिकी सैन्य अधिकारी थे। आज भी जापानी लोग यही कहते है कि काश हमे भी भारत की तरह अपना संविधान लिखने का अवसर मिला होता। बावजूद इसके जापानी एक धार्मिक राष्ट्र और अमेरिका एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र होते हुए दोनों देश तरक्की और खुशहाली पर जोर देते हैं, आरोप प्रत्यारोप पर नहीं।


बहरहाल! लार्ड बर्कन की चुनौती के बाद भी कोई भी व्यक्ति भी संवैधानिक मसौदा तक पेश नही कर सका और दुनिया के सामने भारत के सिर पर कलंक लगा। इस सभा में केवल कांग्रेस ही शामिल नही थी बल्कि मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा जिसकी विचारधारा पर आज के बीजेपी और संघ में सम्मिलित लोग थे। राजाओं के प्रतिनिधि तथा अन्य भी थे। सभी लोगों के प्रयासों पर जिन्ना ने पानी फेर दिया जब जिन्ना ने दो दो संविधान लिखने पर अड़ गए। एक पाकिस्तान के लिए और एक भारत के लिए। इसलिए बात की गम्भीरता को समझते हुए नेहरू इंग्लैण्ड से संविधान विशेषज्ञों को बुलाने पर विचार कर रहे थे। ऐसी बेइज्जती के बाद गांधीजी को अचानक डॉ अम्बेडकर का ख्याल आया और उन्हें संविधान सभा में शामिल करने की बात कर दी।


इस समय तक किसी भी टोली की तरफ़ से डॉ अम्बेडकर का कहीं कोई जिक्र तक नही था, सरदार पटेल ने यहाँ तक कहा था कि डॉ अम्बेडकर के लिए दरबाजे तो क्या हमने खिड़कियाँ भी बन्द की हुई है अब देखते हैं वो कैसे संविधान समिति में शामिल होते हैं। हालाँकि संविधान के प्रति समर्पण को देखते हुए पटेल ने बाबा साहेब को सबसे अच्छी फसल देने वाला बीज कहा था लेकिन पहले संविधान सभा मे शामिल न होने के लिए कई किस्से उपलब्ध हैं जिसमें चुनाव हरवाना हो या जहां से चुनाव जीते वह हिस्सा पाकिस्तान को देना हो।  


कई सदस्य, कई समितियां, कई संशोधन, कई सुझाव और कई देशों के विचारों के बाद पृथक पाकिस्तान की घोषणा के बाद पहली बार 9 दिसम्बर 1946 से भारतीय संविधान पर जमकर कार्य हुए। इस तरह डॉ अम्बेडकर ने मसौदा तैयार करके दुनिया को चौंकाया। आज वो लोग संविधान बदलने की बात करते हैं जिनके पूर्वजों ने जग हंसाई करवाई थी। उस दौर में विश्व के अध्ययन को कॉपी-पेस्ट कहते हैं। मसौदा तैयार करने के पश्चात आगे इसे अमलीजामा पहनाने पर कार्य हुआ जिसमें भी खूब नौटँकियां हुई डॉ बी एन राव के बाद एक अकेले व्यक्ति बाबा साहेब थे जिन्होंने संविधान पर मन से कार्य किये। 


पूरी मेहनत और लगन से पुरे 2 साल 11 माह 18 दिन बाद बाबा साहेब ने देशवासियों के सामने देश का अपना संविधान रखा जिसके दम पर आज देश विकास और शिक्षा की ओर अग्रसर बढ़ रहा है और कहने वाले कहते रहें मगर बाबा साहेब के योगदान ये भारत कभी नही भुला सकता है। हम उनको संविधान निर्माता के रूप तक सीमित नही कर सकते, आर्किटेक्ट ऑफ़ मॉडर्न इंडिया यूँ ही नही कहा गया कुछ तो जानना पड़ेगा उनके योगदान, समर्पण, कर्तव्य और संघर्षों को। 

इन्ही शब्दों के साथ आप सभी को संविधान दिवस की शुभकामनाये।

क्या संविधान लिखकर वाकई कोई कारनामा किया था बाबा साहेब ने? चलो इसबार सच्चाई जान लेते हैं।👇   1895 में पहली बार बाल गंगाधर तिलक ने एक संविधान लिखा था। अब इससे ज्यादा मैं इस संविधान पर न ही बोलूँ वह ज्यादा बेहतर है, फिर 1922 में गांधीजी ने संविधान की मांग उठाई,  मोती लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और पटेल-नेहरू तक न जाने किन किन ने और कितने संविधान पेश किये। ये लोग आपस् में ही, एक व्यक्ति प्रारूप बनाता तो दूसरा फाड़ देता, दुसरा बनाता तो तीसरा फाड़ देता और  इस तरह 50 वर्षों में कोई भी व्यक्ति भारत का एक (संविधान) का प्रारूप ब्रिटिश सरकार के समक्ष पेश नही कर सके।     उससे भी मजे की बात कि संविधान न अंग्रेजों को बनाने दिया और न खुद बना सके। अंग्रेजों पर यह आरोप लगाते कि तुम संविधान बनाएंगे तो उसे हम आजादी के नजरिये से स्वीकार कैसे करें। बात भी सत्य थी लेकिन भारत के किसी भी व्यक्ति को यह मालूम नही था कि इतने बड़े देश का संविधान कैसे होगा और उसमे क्या क्या चीजें होंगी? लोकतंत्र कैसा होगा? कार्यपालिका कैसी होगी? विधायिका व न्यायपालिका कैसी होगी? समाज को क्या अधिकार, कर्तव्य और हक होंगे आदि आदि..     अंग्रेज भारत छोड़ने का एलान कर चुके थे लेकिन वो इस शर्त पर कि उससे पहले तुम भारत के लोग अपना संविधान बना लें जिससे तुम्हारे भविष्य के लिए जो सपने हैं उन पर तुम काम कर सको। इसके बावजूद भी कई बैठकों का दौर हुआ लेकिन कोई भी भारतीय संविधान की वास्तविक रूपरेखा तक तय नही कर सका। यह नौटँकीयों का दौर खत्म नही हो रहा था,साइमन कमीशन जब भारत आने की तैयारी में था उससे पहले ही भारत के सचिव लार्ड बर्कन हेड ने भारतीय नेताओं को चुनौती भरे स्वर में भारत के सभी नेताओं, राजाओं और प्रतिनिधियों से कहा कि इतने बड़े देश में यदि कोई भी व्यक्ति संविधान का मसौदा पेश नही करता तो यह दुर्भाग्य कि बात है।     यदि तुम्हे ब्रिटिश सरकार की या किसी भी सलाहकार अथवा जानकार की जरूरत है तो हम तुम्हारी मदद करने को तैयार है और संविधान तुम्हारी इच्छाओं और जनता की आशाओं के अनुरूप हो। फिर भी यदि तुम कोई भी भारतीय किसी भी तरह का संविधानिक मसौदा पेश करते हैं हम उस संविधान को बिना किसी बहस के स्वीकार कर लेंगे। मगर यदि  तुमने संविधान का मसौदा पेश नही किया तो संविधान हम बनाएंगे और उसे सभी को स्वीकार करना होगा।     अब यह मत समझना कि आजकल जैसे कई लोग हंसी मज़ाक उड़ाने लगे तो कई संगठन संविधान बदलने की बातें करते हैं। वह दौर अलग था, लोग सड़कों पर भी अंग्रेजों के हुक्म से चलते थे और यदि अंग्रेज हमारे देश के संविधान को लिखते तो हम आजादी के बाद उसे संशोधित या बदलने की सोचते तो पहले आपको यह समझना आवश्यक है कि जब भी किसी देश का संविधान लागू होता है तो वह संविधान उस देश का ही नही मानव अधिकार और सयुंक्त राष्ट्र तथा विश्व समुदाय के समक्ष एक दस्तावेज होता है जो देश का प्रतिनिधित्व और जन मानस के अधिकारों का संरक्षण करता है। दूसरी बात किसी भी संविधान के संशोधन में संसद का बहुमत और कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की भूमिका के साथ समाज के सभी तबकों की सुनिश्चित एवं आनुपातिक भागीदारी भी अवश्य होती है। इसलिए फालतू के ख्याल दिमाग से हटा देने चाहिए। दुसरा उदाहरण।    जापान एक विकसित देश है। अमेरिका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी को परमाणु हमले से ख़ाक कर दिया था उसके बाद जापान का पुनरूत्थान करने के लिए अमेरिका के राजनेताओं, सैन्य अधिकारियों और शिक्षाविदों ने मिलकर जापान का संविधान लिखा था। फरवरी 1946 में कुल 24 अमेरिकी लोगों ने जापान की संसद डाइट के लिए कुल एक सप्ताह में वहां के संविधान को लिखा था जिसमे 16 अमेरिकी सैन्य अधिकारी थे। आज भी जापानी लोग यही कहते है कि काश हमे भी भारत की तरह अपना संविधान लिखने का अवसर मिला होता। बावजूद इसके जापानी एक धार्मिक राष्ट्र और अमेरिका एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र होते हुए दोनों देश तरक्की और खुशहाली पर जोर देते हैं, आरोप प्रत्यारोप पर नहीं।    बहरहाल! लार्ड बर्कन की चुनौती के बाद भी कोई भी व्यक्ति भी संवैधानिक मसौदा तक पेश नही कर सका और दुनिया के सामने भारत के सिर पर कलंक लगा। इस सभा में केवल कांग्रेस ही शामिल नही थी बल्कि मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा जिसकी विचारधारा पर आज के बीजेपी और संघ में सम्मिलित लोग थे। राजाओं के प्रतिनिधि तथा अन्य भी थे। सभी लोगों के प्रयासों पर जिन्ना ने पानी फेर दिया जब जिन्ना ने दो दो संविधान लिखने पर अड़ गए। एक पाकिस्तान के लिए और एक भारत के लिए। इसलिए बात की गम्भीरता को समझते हुए नेहरू इंग्लैण्ड से संविधान विशेषज्ञों को बुलाने पर विचार कर रहे थे। ऐसी बेइज्जती के बाद गांधीजी को अचानक डॉ अम्बेडकर का ख्याल आया और उन्हें संविधान सभा में शामिल करने की बात कर दी।    इस समय तक किसी भी टोली की तरफ़ से डॉ अम्बेडकर का कहीं कोई जिक्र तक नही था, सरदार पटेल ने यहाँ तक कहा था कि डॉ अम्बेडकर के लिए दरबाजे तो क्या हमने खिड़कियाँ भी बन्द की हुई है अब देखते हैं वो कैसे संविधान समिति में शामिल होते हैं। हालाँकि संविधान के प्रति समर्पण को देखते हुए पटेल ने बाबा साहेब को सबसे अच्छी फसल देने वाला बीज कहा था लेकिन पहले संविधान सभा मे शामिल न होने के लिए कई किस्से उपलब्ध हैं जिसमें चुनाव हरवाना हो या जहां से चुनाव जीते वह हिस्सा पाकिस्तान को देना हो।      कई सदस्य, कई समितियां, कई संशोधन, कई सुझाव और कई देशों के विचारों के बाद पृथक पाकिस्तान की घोषणा के बाद पहली बार 9 दिसम्बर 1946 से भारतीय संविधान पर जमकर कार्य हुए। इस तरह डॉ अम्बेडकर ने मसौदा तैयार करके दुनिया को चौंकाया। आज वो लोग संविधान बदलने की बात करते हैं जिनके पूर्वजों ने जग हंसाई करवाई थी। उस दौर में विश्व के अध्ययन को कॉपी-पेस्ट कहते हैं। मसौदा तैयार करने के पश्चात आगे इसे अमलीजामा पहनाने पर कार्य हुआ जिसमें भी खूब नौटँकियां हुई डॉ बी एन राव के बाद एक अकेले व्यक्ति बाबा साहेब थे जिन्होंने संविधान पर मन से कार्य किये।     पूरी मेहनत और लगन से पुरे 2 साल 11 माह 18 दिन बाद बाबा साहेब ने देशवासियों के सामने देश का अपना संविधान रखा जिसके दम पर आज देश विकास और शिक्षा की ओर अग्रसर बढ़ रहा है और कहने वाले कहते रहें मगर बाबा साहेब के योगदान ये भारत कभी नही भुला सकता है। हम उनको संविधान निर्माता के रूप तक सीमित नही कर सकते, आर्किटेक्ट ऑफ़ मॉडर्न इंडिया यूँ ही नही कहा गया कुछ तो जानना पड़ेगा उनके योगदान, समर्पण, कर्तव्य और संघर्षों को।   इन्ही शब्दों के साथ आप सभी को संविधान दिवस की शुभकामनाये।    Did Babasaheb really do something by writing the constitution? Let's know the truth this time.   Bal Gangadhar Tilak wrote a constitution for the first time in 1895. Now more than this I should not speak on this constitution, it is better, then in 1922 Gandhiji raised the demand for constitution, Motilal Nehru, Mohammad Ali Jinnah and Patel-Nehru did not even know who and how many constitutions were introduced. These people among themselves, one person would have made the draft, the other would have torn it, the other would have made the third, and in this way in 50 years no person could present the draft of India (Constitution) to the British Government.    The interesting thing is that neither the British were allowed to make the constitution nor could they make it themselves. If you accuse the British that you will make a constitution, then how can we accept it from the point of view of independence. The matter was also true, but no person in India knew how the constitution of such a big country would be and what would be the things in it? How will democracy be like? How will the executive be? What will be the legislature and judiciary? What rights, duties and entitlements will the society have etc etc..    The British had announced to leave India, but on the condition that before that you people of India should make your constitution so that you can work on the dreams you have for your future. Despite this, many meetings were held, but no one could even decide the actual outline of the Indian Constitution. This era of gimmicks was not ending. If no person presents the draft of the constitution in India, then it is a matter of misfortune.    If you need the British Government or any adviser or knowledgeable, then we are ready to help you and the constitution is in accordance with your wishes and the hopes of the people. Still, if you any Indian present any kind of constitutional draft, we will accept that constitution without any debate. But if you do not present the draft of the constitution, then we will make the constitution and it will have to be accepted by all.    Now do not understand that nowadays as many people start laughing, then many organizations talk about changing the constitution. That era was different, people used to walk on the streets also on the orders of the British and if the British would have written the constitution of our country, then we would have thought of modifying or changing it after independence, then first you must understand that whenever the constitution of any country is implemented. If it is, then that constitution is not only the human rights of that country and it is a document before the United Nations and the world community, which represents the country and protects the rights of the people. Secondly, in the amendment of any constitution, along with the majority of the Parliament and the role of the executive and judiciary, there must be an assured and proportionate participation of all sections of the society. Therefore, unnecessary thoughts should be removed from the mind. Second example.    Japan is a developed country. After America destroyed two Japanese cities of Hiroshima and Nagasaki with nuclear attack, American politicians, military officials and academics together wrote the constitution of Japan to revive Japan. In February 1946, a total of 24 Americans wrote the constitution for the Diet of Japan's Parliament in a total of one week, in which there were 16 American military officers. Even today, Japanese people say that I wish we too had the opportunity to write our own constitution like India. Despite this, Japanese being a religious nation and America being a secular nation, both the countries emphasize on progress and prosperity, not on accusations.    However! Even after the challenge of Lord Burkan, no person could even present the constitutional draft and India was stigmatized in front of the world. Not only the Congress was involved in this meeting, but the Muslim League, Hindu Mahasabha, whose ideology was followed by the people involved in today's BJP and Sangh. There were also representatives of the kings and others. The efforts of all the people were foiled when Jinnah insisted on writing two constitutions. One for Pakistan and one for India. Therefore, realizing the gravity of the matter, Nehru was contemplating to call constitutional experts from England. After such humiliation, Gandhiji suddenly thought of Dr. Ambedkar and talked about including him in the Constituent Assembly.    Till this time there was no mention of Dr. Ambedkar from any group, Sardar Patel had even said that if we have closed the doors for Dr. Ambedkar, have we closed the windows, now let's see how he was included in the Constitution Committee. There are. Although Patel had called Babasaheb the best crop giving seed in view of his devotion to the constitution, but there are many tales available for not attending the first Constituent Assembly in which the election has to be defeated or the part from where the election is won has to be given to Pakistan. .     After the declaration of a separate Pakistan after many members, many committees, many amendments, many suggestions and views of many countries, for the first time on 9 December 1946, the Indian Constitution was worked hard. In this way Dr. Ambedkar surprised the world by drafting. Today those people talk about changing the constitution, whose ancestors had made the world laugh. The study of the world at that time is called copy-paste. After preparing the draft, further work was done to implement it, in which there was a lot of gimmicks, after Dr. BN Rao, Babasaheb was the only person who wrote the constitution.Worked with heart.        After 2 years 11 months 18 days with full hard work and dedication, Babasaheb placed his constitution of the country in front of the countrymen, on the basis of which today the country is moving towards development and education and those who keep saying but Babasaheb's contribution is this India. Can never forget. We cannot limit him as the architect of the constitution, the Architect of Modern India has not been told just that, something has to be known about his contribution, dedication, duty and struggle.    With these words, wishing you all a very Happy Constitution Day.


Did Babasaheb really do something by writing the constitution? Let's know the truth this time.


Bal Gangadhar Tilak wrote a constitution for the first time in 1895. Now more than this I should not speak on this constitution, it is better, then in 1922 Gandhiji raised the demand for constitution, Motilal Nehru, Mohammad Ali Jinnah and Patel-Nehru did not even know who and how many constitutions were introduced. These people among themselves, one person would have made the draft, the other would have torn it, the other would have made the third, and in this way in 50 years no person could present the draft of India (Constitution) to the British Government.


The interesting thing is that neither the British were allowed to make the constitution nor could they make it themselves. If you accuse the British that you will make a constitution, then how can we accept it from the point of view of independence. The matter was also true, but no person in India knew how the constitution of such a big country would be and what would be the things in it? How will democracy be like? How will the executive be? What will be the legislature and judiciary? What rights, duties and entitlements will the society have etc etc..


The British had announced to leave India, but on the condition that before that you people of India should make your constitution so that you can work on the dreams you have for your future. Despite this, many meetings were held, but no one could even decide the actual outline of the Indian Constitution. This era of gimmicks was not ending. If no person presents the draft of the constitution in India, then it is a matter of misfortune.


If you need the British Government or any adviser or knowledgeable, then we are ready to help you and the constitution is in accordance with your wishes and the hopes of the people. Still, if you any Indian present any kind of constitutional draft, we will accept that constitution without any debate. But if you do not present the draft of the constitution, then we will make the constitution and it will have to be accepted by all.


Now do not understand that nowadays as many people start laughing, then many organizations talk about changing the constitution. That era was different, people used to walk on the streets also on the orders of the British and if the British would have written the constitution of our country, then we would have thought of modifying or changing it after independence, then first you must understand that whenever the constitution of any country is implemented. If it is, then that constitution is not only the human rights of that country and it is a document before the United Nations and the world community, which represents the country and protects the rights of the people. Secondly, in the amendment of any constitution, along with the majority of the Parliament and the role of the executive and judiciary, there must be an assured and proportionate participation of all sections of the society. Therefore, unnecessary thoughts should be removed from the mind. Second example.


Japan is a developed country. After America destroyed two Japanese cities of Hiroshima and Nagasaki with nuclear attack, American politicians, military officials and academics together wrote the constitution of Japan to revive Japan. In February 1946, a total of 24 Americans wrote the constitution for the Diet of Japan's Parliament in a total of one week, in which there were 16 American military officers. Even today, Japanese people say that I wish we too had the opportunity to write our own constitution like India. Despite this, Japanese being a religious nation and America being a secular nation, both the countries emphasize on progress and prosperity, not on accusations.

क्या संविधान लिखकर वाकई कोई कारनामा किया था बाबा साहेब ने? चलो इसबार सच्चाई जान लेते हैं।👇   1895 में पहली बार बाल गंगाधर तिलक ने एक संविधान लिखा था। अब इससे ज्यादा मैं इस संविधान पर न ही बोलूँ वह ज्यादा बेहतर है, फिर 1922 में गांधीजी ने संविधान की मांग उठाई,  मोती लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और पटेल-नेहरू तक न जाने किन किन ने और कितने संविधान पेश किये। ये लोग आपस् में ही, एक व्यक्ति प्रारूप बनाता तो दूसरा फाड़ देता, दुसरा बनाता तो तीसरा फाड़ देता और  इस तरह 50 वर्षों में कोई भी व्यक्ति भारत का एक (संविधान) का प्रारूप ब्रिटिश सरकार के समक्ष पेश नही कर सके।     उससे भी मजे की बात कि संविधान न अंग्रेजों को बनाने दिया और न खुद बना सके। अंग्रेजों पर यह आरोप लगाते कि तुम संविधान बनाएंगे तो उसे हम आजादी के नजरिये से स्वीकार कैसे करें। बात भी सत्य थी लेकिन भारत के किसी भी व्यक्ति को यह मालूम नही था कि इतने बड़े देश का संविधान कैसे होगा और उसमे क्या क्या चीजें होंगी? लोकतंत्र कैसा होगा? कार्यपालिका कैसी होगी? विधायिका व न्यायपालिका कैसी होगी? समाज को क्या अधिकार, कर्तव्य और हक होंगे आदि आदि..     अंग्रेज भारत छोड़ने का एलान कर चुके थे लेकिन वो इस शर्त पर कि उससे पहले तुम भारत के लोग अपना संविधान बना लें जिससे तुम्हारे भविष्य के लिए जो सपने हैं उन पर तुम काम कर सको। इसके बावजूद भी कई बैठकों का दौर हुआ लेकिन कोई भी भारतीय संविधान की वास्तविक रूपरेखा तक तय नही कर सका। यह नौटँकीयों का दौर खत्म नही हो रहा था,साइमन कमीशन जब भारत आने की तैयारी में था उससे पहले ही भारत के सचिव लार्ड बर्कन हेड ने भारतीय नेताओं को चुनौती भरे स्वर में भारत के सभी नेताओं, राजाओं और प्रतिनिधियों से कहा कि इतने बड़े देश में यदि कोई भी व्यक्ति संविधान का मसौदा पेश नही करता तो यह दुर्भाग्य कि बात है।     यदि तुम्हे ब्रिटिश सरकार की या किसी भी सलाहकार अथवा जानकार की जरूरत है तो हम तुम्हारी मदद करने को तैयार है और संविधान तुम्हारी इच्छाओं और जनता की आशाओं के अनुरूप हो। फिर भी यदि तुम कोई भी भारतीय किसी भी तरह का संविधानिक मसौदा पेश करते हैं हम उस संविधान को बिना किसी बहस के स्वीकार कर लेंगे। मगर यदि  तुमने संविधान का मसौदा पेश नही किया तो संविधान हम बनाएंगे और उसे सभी को स्वीकार करना होगा।     अब यह मत समझना कि आजकल जैसे कई लोग हंसी मज़ाक उड़ाने लगे तो कई संगठन संविधान बदलने की बातें करते हैं। वह दौर अलग था, लोग सड़कों पर भी अंग्रेजों के हुक्म से चलते थे और यदि अंग्रेज हमारे देश के संविधान को लिखते तो हम आजादी के बाद उसे संशोधित या बदलने की सोचते तो पहले आपको यह समझना आवश्यक है कि जब भी किसी देश का संविधान लागू होता है तो वह संविधान उस देश का ही नही मानव अधिकार और सयुंक्त राष्ट्र तथा विश्व समुदाय के समक्ष एक दस्तावेज होता है जो देश का प्रतिनिधित्व और जन मानस के अधिकारों का संरक्षण करता है। दूसरी बात किसी भी संविधान के संशोधन में संसद का बहुमत और कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की भूमिका के साथ समाज के सभी तबकों की सुनिश्चित एवं आनुपातिक भागीदारी भी अवश्य होती है। इसलिए फालतू के ख्याल दिमाग से हटा देने चाहिए। दुसरा उदाहरण।    जापान एक विकसित देश है। अमेरिका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी को परमाणु हमले से ख़ाक कर दिया था उसके बाद जापान का पुनरूत्थान करने के लिए अमेरिका के राजनेताओं, सैन्य अधिकारियों और शिक्षाविदों ने मिलकर जापान का संविधान लिखा था। फरवरी 1946 में कुल 24 अमेरिकी लोगों ने जापान की संसद डाइट के लिए कुल एक सप्ताह में वहां के संविधान को लिखा था जिसमे 16 अमेरिकी सैन्य अधिकारी थे। आज भी जापानी लोग यही कहते है कि काश हमे भी भारत की तरह अपना संविधान लिखने का अवसर मिला होता। बावजूद इसके जापानी एक धार्मिक राष्ट्र और अमेरिका एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र होते हुए दोनों देश तरक्की और खुशहाली पर जोर देते हैं, आरोप प्रत्यारोप पर नहीं।    बहरहाल! लार्ड बर्कन की चुनौती के बाद भी कोई भी व्यक्ति भी संवैधानिक मसौदा तक पेश नही कर सका और दुनिया के सामने भारत के सिर पर कलंक लगा। इस सभा में केवल कांग्रेस ही शामिल नही थी बल्कि मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा जिसकी विचारधारा पर आज के बीजेपी और संघ में सम्मिलित लोग थे। राजाओं के प्रतिनिधि तथा अन्य भी थे। सभी लोगों के प्रयासों पर जिन्ना ने पानी फेर दिया जब जिन्ना ने दो दो संविधान लिखने पर अड़ गए। एक पाकिस्तान के लिए और एक भारत के लिए। इसलिए बात की गम्भीरता को समझते हुए नेहरू इंग्लैण्ड से संविधान विशेषज्ञों को बुलाने पर विचार कर रहे थे। ऐसी बेइज्जती के बाद गांधीजी को अचानक डॉ अम्बेडकर का ख्याल आया और उन्हें संविधान सभा में शामिल करने की बात कर दी।    इस समय तक किसी भी टोली की तरफ़ से डॉ अम्बेडकर का कहीं कोई जिक्र तक नही था, सरदार पटेल ने यहाँ तक कहा था कि डॉ अम्बेडकर के लिए दरबाजे तो क्या हमने खिड़कियाँ भी बन्द की हुई है अब देखते हैं वो कैसे संविधान समिति में शामिल होते हैं। हालाँकि संविधान के प्रति समर्पण को देखते हुए पटेल ने बाबा साहेब को सबसे अच्छी फसल देने वाला बीज कहा था लेकिन पहले संविधान सभा मे शामिल न होने के लिए कई किस्से उपलब्ध हैं जिसमें चुनाव हरवाना हो या जहां से चुनाव जीते वह हिस्सा पाकिस्तान को देना हो।      कई सदस्य, कई समितियां, कई संशोधन, कई सुझाव और कई देशों के विचारों के बाद पृथक पाकिस्तान की घोषणा के बाद पहली बार 9 दिसम्बर 1946 से भारतीय संविधान पर जमकर कार्य हुए। इस तरह डॉ अम्बेडकर ने मसौदा तैयार करके दुनिया को चौंकाया। आज वो लोग संविधान बदलने की बात करते हैं जिनके पूर्वजों ने जग हंसाई करवाई थी। उस दौर में विश्व के अध्ययन को कॉपी-पेस्ट कहते हैं। मसौदा तैयार करने के पश्चात आगे इसे अमलीजामा पहनाने पर कार्य हुआ जिसमें भी खूब नौटँकियां हुई डॉ बी एन राव के बाद एक अकेले व्यक्ति बाबा साहेब थे जिन्होंने संविधान पर मन से कार्य किये।     पूरी मेहनत और लगन से पुरे 2 साल 11 माह 18 दिन बाद बाबा साहेब ने देशवासियों के सामने देश का अपना संविधान रखा जिसके दम पर आज देश विकास और शिक्षा की ओर अग्रसर बढ़ रहा है और कहने वाले कहते रहें मगर बाबा साहेब के योगदान ये भारत कभी नही भुला सकता है। हम उनको संविधान निर्माता के रूप तक सीमित नही कर सकते, आर्किटेक्ट ऑफ़ मॉडर्न इंडिया यूँ ही नही कहा गया कुछ तो जानना पड़ेगा उनके योगदान, समर्पण, कर्तव्य और संघर्षों को।   इन्ही शब्दों के साथ आप सभी को संविधान दिवस की शुभकामनाये।  क्या संविधान लिखकर वाकई कोई कारनामा किया था बाबा साहेब ने? चलो इसबार सच्चाई जान लेते हैं।👇   1895 में पहली बार बाल गंगाधर तिलक ने एक संविधान लिखा था। अब इससे ज्यादा मैं इस संविधान पर न ही बोलूँ वह ज्यादा बेहतर है, फिर 1922 में गांधीजी ने संविधान की मांग उठाई,  मोती लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और पटेल-नेहरू तक न जाने किन किन ने और कितने संविधान पेश किये। ये लोग आपस् में ही, एक व्यक्ति प्रारूप बनाता तो दूसरा फाड़ देता, दुसरा बनाता तो तीसरा फाड़ देता और  इस तरह 50 वर्षों में कोई भी व्यक्ति भारत का एक (संविधान) का प्रारूप ब्रिटिश सरकार के समक्ष पेश नही कर सके।     उससे भी मजे की बात कि संविधान न अंग्रेजों को बनाने दिया और न खुद बना सके। अंग्रेजों पर यह आरोप लगाते कि तुम संविधान बनाएंगे तो उसे हम आजादी के नजरिये से स्वीकार कैसे करें। बात भी सत्य थी लेकिन भारत के किसी भी व्यक्ति को यह मालूम नही था कि इतने बड़े देश का संविधान कैसे होगा और उसमे क्या क्या चीजें होंगी? लोकतंत्र कैसा होगा? कार्यपालिका कैसी होगी? विधायिका व न्यायपालिका कैसी होगी? समाज को क्या अधिकार, कर्तव्य और हक होंगे आदि आदि..     अंग्रेज भारत छोड़ने का एलान कर चुके थे लेकिन वो इस शर्त पर कि उससे पहले तुम भारत के लोग अपना संविधान बना लें जिससे तुम्हारे भविष्य के लिए जो सपने हैं उन पर तुम काम कर सको। इसके बावजूद भी कई बैठकों का दौर हुआ लेकिन कोई भी भारतीय संविधान की वास्तविक रूपरेखा तक तय नही कर सका। यह नौटँकीयों का दौर खत्म नही हो रहा था,साइमन कमीशन जब भारत आने की तैयारी में था उससे पहले ही भारत के सचिव लार्ड बर्कन हेड ने भारतीय नेताओं को चुनौती भरे स्वर में भारत के सभी नेताओं, राजाओं और प्रतिनिधियों से कहा कि इतने बड़े देश में यदि कोई भी व्यक्ति संविधान का मसौदा पेश नही करता तो यह दुर्भाग्य कि बात है।     यदि तुम्हे ब्रिटिश सरकार की या किसी भी सलाहकार अथवा जानकार की जरूरत है तो हम तुम्हारी मदद करने को तैयार है और संविधान तुम्हारी इच्छाओं और जनता की आशाओं के अनुरूप हो। फिर भी यदि तुम कोई भी भारतीय किसी भी तरह का संविधानिक मसौदा पेश करते हैं हम उस संविधान को बिना किसी बहस के स्वीकार कर लेंगे। मगर यदि  तुमने संविधान का मसौदा पेश नही किया तो संविधान हम बनाएंगे और उसे सभी को स्वीकार करना होगा।     अब यह मत समझना कि आजकल जैसे कई लोग हंसी मज़ाक उड़ाने लगे तो कई संगठन संविधान बदलने की बातें करते हैं। वह दौर अलग था, लोग सड़कों पर भी अंग्रेजों के हुक्म से चलते थे और यदि अंग्रेज हमारे देश के संविधान को लिखते तो हम आजादी के बाद उसे संशोधित या बदलने की सोचते तो पहले आपको यह समझना आवश्यक है कि जब भी किसी देश का संविधान लागू होता है तो वह संविधान उस देश का ही नही मानव अधिकार और सयुंक्त राष्ट्र तथा विश्व समुदाय के समक्ष एक दस्तावेज होता है जो देश का प्रतिनिधित्व और जन मानस के अधिकारों का संरक्षण करता है। दूसरी बात किसी भी संविधान के संशोधन में संसद का बहुमत और कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की भूमिका के साथ समाज के सभी तबकों की सुनिश्चित एवं आनुपातिक भागीदारी भी अवश्य होती है। इसलिए फालतू के ख्याल दिमाग से हटा देने चाहिए। दुसरा उदाहरण।    जापान एक विकसित देश है। अमेरिका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी को परमाणु हमले से ख़ाक कर दिया था उसके बाद जापान का पुनरूत्थान करने के लिए अमेरिका के राजनेताओं, सैन्य अधिकारियों और शिक्षाविदों ने मिलकर जापान का संविधान लिखा था। फरवरी 1946 में कुल 24 अमेरिकी लोगों ने जापान की संसद डाइट के लिए कुल एक सप्ताह में वहां के संविधान को लिखा था जिसमे 16 अमेरिकी सैन्य अधिकारी थे। आज भी जापानी लोग यही कहते है कि काश हमे भी भारत की तरह अपना संविधान लिखने का अवसर मिला होता। बावजूद इसके जापानी एक धार्मिक राष्ट्र और अमेरिका एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र होते हुए दोनों देश तरक्की और खुशहाली पर जोर देते हैं, आरोप प्रत्यारोप पर नहीं।    बहरहाल! लार्ड बर्कन की चुनौती के बाद भी कोई भी व्यक्ति भी संवैधानिक मसौदा तक पेश नही कर सका और दुनिया के सामने भारत के सिर पर कलंक लगा। इस सभा में केवल कांग्रेस ही शामिल नही थी बल्कि मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा जिसकी विचारधारा पर आज के बीजेपी और संघ में सम्मिलित लोग थे। राजाओं के प्रतिनिधि तथा अन्य भी थे। सभी लोगों के प्रयासों पर जिन्ना ने पानी फेर दिया जब जिन्ना ने दो दो संविधान लिखने पर अड़ गए। एक पाकिस्तान के लिए और एक भारत के लिए। इसलिए बात की गम्भीरता को समझते हुए नेहरू इंग्लैण्ड से संविधान विशेषज्ञों को बुलाने पर विचार कर रहे थे। ऐसी बेइज्जती के बाद गांधीजी को अचानक डॉ अम्बेडकर का ख्याल आया और उन्हें संविधान सभा में शामिल करने की बात कर दी।    इस समय तक किसी भी टोली की तरफ़ से डॉ अम्बेडकर का कहीं कोई जिक्र तक नही था, सरदार पटेल ने यहाँ तक कहा था कि डॉ अम्बेडकर के लिए दरबाजे तो क्या हमने खिड़कियाँ भी बन्द की हुई है अब देखते हैं वो कैसे संविधान समिति में शामिल होते हैं। हालाँकि संविधान के प्रति समर्पण को देखते हुए पटेल ने बाबा साहेब को सबसे अच्छी फसल देने वाला बीज कहा था लेकिन पहले संविधान सभा मे शामिल न होने के लिए कई किस्से उपलब्ध हैं जिसमें चुनाव हरवाना हो या जहां से चुनाव जीते वह हिस्सा पाकिस्तान को देना हो।      कई सदस्य, कई समितियां, कई संशोधन, कई सुझाव और कई देशों के विचारों के बाद पृथक पाकिस्तान की घोषणा के बाद पहली बार 9 दिसम्बर 1946 से भारतीय संविधान पर जमकर कार्य हुए। इस तरह डॉ अम्बेडकर ने मसौदा तैयार करके दुनिया को चौंकाया। आज वो लोग संविधान बदलने की बात करते हैं जिनके पूर्वजों ने जग हंसाई करवाई थी। उस दौर में विश्व के अध्ययन को कॉपी-पेस्ट कहते हैं। मसौदा तैयार करने के पश्चात आगे इसे अमलीजामा पहनाने पर कार्य हुआ जिसमें भी खूब नौटँकियां हुई डॉ बी एन राव के बाद एक अकेले व्यक्ति बाबा साहेब थे जिन्होंने संविधान पर मन से कार्य किये।     पूरी मेहनत और लगन से पुरे 2 साल 11 माह 18 दिन बाद बाबा साहेब ने देशवासियों के सामने देश का अपना संविधान रखा जिसके दम पर आज देश विकास और शिक्षा की ओर अग्रसर बढ़ रहा है और कहने वाले कहते रहें मगर बाबा साहेब के योगदान ये भारत कभी नही भुला सकता है। हम उनको संविधान निर्माता के रूप तक सीमित नही कर सकते, आर्किटेक्ट ऑफ़ मॉडर्न इंडिया यूँ ही नही कहा गया कुछ तो जानना पड़ेगा उनके योगदान, समर्पण, कर्तव्य और संघर्षों को।   इन्ही शब्दों के साथ आप सभी को संविधान दिवस की शुभकामनाये।    Did Babasaheb really do something by writing the constitution? Let's know the truth this time.   Bal Gangadhar Tilak wrote a constitution for the first time in 1895. Now more than this I should not speak on this constitution, it is better, then in 1922 Gandhiji raised the demand for constitution, Motilal Nehru, Mohammad Ali Jinnah and Patel-Nehru did not even know who and how many constitutions were introduced. These people among themselves, one person would have made the draft, the other would have torn it, the other would have made the third, and in this way in 50 years no person could present the draft of India (Constitution) to the British Government.    The interesting thing is that neither the British were allowed to make the constitution nor could they make it themselves. If you accuse the British that you will make a constitution, then how can we accept it from the point of view of independence. The matter was also true, but no person in India knew how the constitution of such a big country would be and what would be the things in it? How will democracy be like? How will the executive be? What will be the legislature and judiciary? What rights, duties and entitlements will the society have etc etc..    The British had announced to leave India, but on the condition that before that you people of India should make your constitution so that you can work on the dreams you have for your future. Despite this, many meetings were held, but no one could even decide the actual outline of the Indian Constitution. This era of gimmicks was not ending. If no person presents the draft of the constitution in India, then it is a matter of misfortune.    If you need the British Government or any adviser or knowledgeable, then we are ready to help you and the constitution is in accordance with your wishes and the hopes of the people. Still, if you any Indian present any kind of constitutional draft, we will accept that constitution without any debate. But if you do not present the draft of the constitution, then we will make the constitution and it will have to be accepted by all.    Now do not understand that nowadays as many people start laughing, then many organizations talk about changing the constitution. That era was different, people used to walk on the streets also on the orders of the British and if the British would have written the constitution of our country, then we would have thought of modifying or changing it after independence, then first you must understand that whenever the constitution of any country is implemented. If it is, then that constitution is not only the human rights of that country and it is a document before the United Nations and the world community, which represents the country and protects the rights of the people. Secondly, in the amendment of any constitution, along with the majority of the Parliament and the role of the executive and judiciary, there must be an assured and proportionate participation of all sections of the society. Therefore, unnecessary thoughts should be removed from the mind. Second example.    Japan is a developed country. After America destroyed two Japanese cities of Hiroshima and Nagasaki with nuclear attack, American politicians, military officials and academics together wrote the constitution of Japan to revive Japan. In February 1946, a total of 24 Americans wrote the constitution for the Diet of Japan's Parliament in a total of one week, in which there were 16 American military officers. Even today, Japanese people say that I wish we too had the opportunity to write our own constitution like India. Despite this, Japanese being a religious nation and America being a secular nation, both the countries emphasize on progress and prosperity, not on accusations.    However! Even after the challenge of Lord Burkan, no person could even present the constitutional draft and India was stigmatized in front of the world. Not only the Congress was involved in this meeting, but the Muslim League, Hindu Mahasabha, whose ideology was followed by the people involved in today's BJP and Sangh. There were also representatives of the kings and others. The efforts of all the people were foiled when Jinnah insisted on writing two constitutions. One for Pakistan and one for India. Therefore, realizing the gravity of the matter, Nehru was contemplating to call constitutional experts from England. After such humiliation, Gandhiji suddenly thought of Dr. Ambedkar and talked about including him in the Constituent Assembly.    Till this time there was no mention of Dr. Ambedkar from any group, Sardar Patel had even said that if we have closed the doors for Dr. Ambedkar, have we closed the windows, now let's see how he was included in the Constitution Committee. There are. Although Patel had called Babasaheb the best crop giving seed in view of his devotion to the constitution, but there are many tales available for not attending the first Constituent Assembly in which the election has to be defeated or the part from where the election is won has to be given to Pakistan. .     After the declaration of a separate Pakistan after many members, many committees, many amendments, many suggestions and views of many countries, for the first time on 9 December 1946, the Indian Constitution was worked hard. In this way Dr. Ambedkar surprised the world by drafting. Today those people talk about changing the constitution, whose ancestors had made the world laugh. The study of the world at that time is called copy-paste. After preparing the draft, further work was done to implement it, in which there was a lot of gimmicks, after Dr. BN Rao, Babasaheb was the only person who wrote the constitution.Worked with heart.        After 2 years 11 months 18 days with full hard work and dedication, Babasaheb placed his constitution of the country in front of the countrymen, on the basis of which today the country is moving towards development and education and those who keep saying but Babasaheb's contribution is this India. Can never forget. We cannot limit him as the architect of the constitution, the Architect of Modern India has not been told just that, something has to be known about his contribution, dedication, duty and struggle.    With these words, wishing you all a very Happy Constitution Day.   Did Babasaheb really do something by writing the constitution? Let's know the truth this time.   Bal Gangadhar Tilak wrote a constitution for the first time in 1895. Now more than this I should not speak on this constitution, it is better, then in 1922 Gandhiji raised the demand for constitution, Motilal Nehru, Mohammad Ali Jinnah and Patel-Nehru did not even know who and how many constitutions were introduced. These people among themselves, one person would have made the draft, the other would have torn it, the other would have made the third, and in this way in 50 years no person could present the draft of India (Constitution) to the British Government.    The interesting thing is that neither the British were allowed to make the constitution nor could they make it themselves. If you accuse the British that you will make a constitution, then how can we accept it from the point of view of independence. The matter was also true, but no person in India knew how the constitution of such a big country would be and what would be the things in it? How will democracy be like? How will the executive be? What will be the legislature and judiciary? What rights, duties and entitlements will the society have etc etc..    The British had announced to leave India, but on the condition that before that you people of India should make your constitution so that you can work on the dreams you have for your future. Despite this, many meetings were held, but no one could even decide the actual outline of the Indian Constitution. This era of gimmicks was not ending. If no person presents the draft of the constitution in India, then it is a matter of misfortune.    If you need the British Government or any adviser or knowledgeable, then we are ready to help you and the constitution is in accordance with your wishes and the hopes of the people. Still, if you any Indian present any kind of constitutional draft, we will accept that constitution without any debate. But if you do not present the draft of the constitution, then we will make the constitution and it will have to be accepted by all.    Now do not understand that nowadays as many people start laughing, then many organizations talk about changing the constitution. That era was different, people used to walk on the streets also on the orders of the British and if the British would have written the constitution of our country, then we would have thought of modifying or changing it after independence, then first you must understand that whenever the constitution of any country is implemented. If it is, then that constitution is not only the human rights of that country and it is a document before the United Nations and the world community, which represents the country and protects the rights of the people. Secondly, in the amendment of any constitution, along with the majority of the Parliament and the role of the executive and judiciary, there must be an assured and proportionate participation of all sections of the society. Therefore, unnecessary thoughts should be removed from the mind. Second example.    Japan is a developed country. After America destroyed two Japanese cities of Hiroshima and Nagasaki with nuclear attack, American politicians, military officials and academics together wrote the constitution of Japan to revive Japan. In February 1946, a total of 24 Americans wrote the constitution for the Diet of Japan's Parliament in a total of one week, in which there were 16 American military officers. Even today, Japanese people say that I wish we too had the opportunity to write our own constitution like India. Despite this, Japanese being a religious nation and America being a secular nation, both the countries emphasize on progress and prosperity, not on accusations.    However! Even after the challenge of Lord Burkan, no person could even present the constitutional draft and India was stigmatized in front of the world. Not only the Congress was involved in this meeting, but the Muslim League, Hindu Mahasabha, whose ideology was followed by the people involved in today's BJP and Sangh. There were also representatives of the kings and others. The efforts of all the people were foiled when Jinnah insisted on writing two constitutions. One for Pakistan and one for India. Therefore, realizing the gravity of the matter, Nehru was contemplating to call constitutional experts from England. After such humiliation, Gandhiji suddenly thought of Dr. Ambedkar and talked about including him in the Constituent Assembly.    Till this time there was no mention of Dr. Ambedkar from any group, Sardar Patel had even said that if we have closed the doors for Dr. Ambedkar, have we closed the windows, now let's see how he was included in the Constitution Committee. There are. Although Patel had called Babasaheb the best crop giving seed in view of his devotion to the constitution, but there are many tales available for not attending the first Constituent Assembly in which the election has to be defeated or the part from where the election is won has to be given to Pakistan. .     After the declaration of a separate Pakistan after many members, many committees, many amendments, many suggestions and views of many countries, for the first time on 9 December 1946, the Indian Constitution was worked hard. In this way Dr. Ambedkar surprised the world by drafting. Today those people talk about changing the constitution, whose ancestors had made the world laugh. The study of the world at that time is called copy-paste. After preparing the draft, further work was done to implement it, in which there was a lot of gimmicks, after Dr. BN Rao, Babasaheb was the only person who wrote the constitution.Worked with heart.        After 2 years 11 months 18 days with full hard work and dedication, Babasaheb placed his constitution of the country in front of the countrymen, on the basis of which today the country is moving towards development and education and those who keep saying but Babasaheb's contribution is this India. Can never forget. We cannot limit him as the architect of the constitution, the Architect of Modern India has not been told just that, something has to be known about his contribution, dedication, duty and struggle.    With these words, wishing you all a very Happy Constitution Day.


However! Even after the challenge of Lord Burkan, no person could even present the constitutional draft and India was stigmatized in front of the world. Not only the Congress was involved in this meeting, but the Muslim League, Hindu Mahasabha, whose ideology was followed by the people involved in today's BJP and Sangh. There were also representatives of the kings and others. The efforts of all the people were foiled when Jinnah insisted on writing two constitutions. One for Pakistan and one for India. Therefore, realizing the gravity of the matter, Nehru was contemplating to call constitutional experts from England. After such humiliation, Gandhiji suddenly thought of Dr. Ambedkar and talked about including him in the Constituent Assembly.


Till this time there was no mention of Dr. Ambedkar from any group, Sardar Patel had even said that if we have closed the doors for Dr. Ambedkar, have we closed the windows, now let's see how he was included in the Constitution Committee. There are. Although Patel had called Babasaheb the best crop giving seed in view of his devotion to the constitution, but there are many tales available for not attending the first Constituent Assembly in which the election has to be defeated or the part from where the election is won has to be given to Pakistan. .


After the declaration of a separate Pakistan after many members, many committees, many amendments, many suggestions and views of many countries, for the first time on 9 December 1946, the Indian Constitution was worked hard. In this way Dr. Ambedkar surprised the world by drafting. Today those people talk about changing the constitution, whose ancestors had made the world laugh. The study of the world at that time is called copy-paste. After preparing the draft, further work was done to implement it, in which there was a lot of gimmicks, after Dr. BN Rao, Babasaheb was the only person who wrote the constitution.Worked with heart.




After 2 years 11 months 18 days with full hard work and dedication, Babasaheb placed his constitution of the country in front of the countrymen, on the basis of which today the country is moving towards development and education and those who keep saying but Babasaheb's contribution is this India. Can never forget. We cannot limit him as the architect of the constitution, the Architect of Modern India has not been told just that, something has to be known about his contribution, dedication, duty and struggle.


With these words, wishing you all a very Happy Constitution Day.

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