आरटीआई की धारा-2(h) के अंतर्गत लोक प्राधिकारी :Public Authority under Section-2(h) of RTI:

 आरटीआई की धारा-2(h) के अंतर्गत लोक प्राधिकारी : 

एक अवलोकन

कहने का तात्पर्य यह है कि थोड़ी सी सूचना से प्रज्ञा नहीं आ सकती। सूचना तो एक साधन है, साध्य तो जीवन है अत: सूचना का निर्विघ्न रूप से प्रसारित होना आवश्यक है। सूचना, ज्ञान का आधार है, जो विचारों को जगाता है और बिना विचार के अभिव्यक्ति संभव नहीं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आज के लोकतांत्रिक देशों का गतिमान मुद्दा है।


सूचना लोकतंत्र की मुद्रा होती है एवं किसी भी जीवंत सभ्य समाज के उद्भव और विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।"

अतः सूचना को लोकतांत्रिक समाज के लिए ऑक्सीजन की संज्ञा दी जा सकती है। भारतीय लोकतंत्र को मज़बूत करने और शासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से भारतीय संसद ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 लागू किया।

सूचना का अधिकार अधिनियम लोक सूचना प्राधिकारी को अधिनियम के क्रियान्वयन की धूरी बनाते हुए, उसके पास उपलब्ध सूचना तक पहुँच का अधिकार प्रदान करता है। यह अधिनियम केवल लोक प्राधिकारी पर लागू होता है इसलिए लोक प्राधिकारी की अवधारणा को समझना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 2(h) के अनुसार :-


          लोक प्राधिकारी" से, –

(a) संविधान द्वारा या उसके अधीन ;

(b) संसद द्वारा बनाई गई किसी अन्य विधि द्वारा ;

(c) राज्य विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी अन्य विधि द्वारा ;

(d) समुचित सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना या किये गए आदेश द्वारा, स्थापित या गठित कोई प्राधिकारी या निकाय या स्वायत सरकारी संस्था अभिप्रेत है, और इसके अंतर्गत, –

(i) कोई ऐसा निकाय है जो समुचित सरकार के स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन, या उसके द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा सारभूत रूप से वित्तपोषित है 

ii) कोई ऐसा गैर सरकारी संगठन है जो समुचित सरकार द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा सारभूत रूप से वित्तपोषित है ;

आरटीआई अधिनियम के अधिनियमित होने से पहले राज्य को संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत परिभाषित किया गया,जो कि भाग तीन (मौलिक अधिकार ) का हिस्सा है। मौलिक अधिकारों की प्रयोज्यता के लिए राज्य को परिभाषित करना आवश्यक था, जिससे अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार तय किया जा सके। अब मुख्य प्रश्न यह उठता है कि क्या संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत 'राज्य' और आरटीआई अधिनियम के तहत परिभाषित 'लोक प्राधिकारी' समानार्थी है ?


प्रदीप कुमार विश्वास बनाम् इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ केमिकल बायोलोजी (सीएसआईआर केस) के मामले में सात न्यायाधीशों की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य की परिभाषा कैसे तय हो का अभिनिश्चय किया ।

यह अभिनिर्धारित किया गया कि प्रत्येक मामले में यह सवाल किया जाना चाहिए कि क्या संचयी तथ्यों के प्रकाश में, यह स्थापित होता है कि निकाय :

• आर्थिक रूप से

• कार्यात्मक रूप से

• प्रशासनिक रूप से


सरकार के नियंत्रण में या उसके प्रभुत्व में है | इस तरह का नियंत्रण प्रश्नोत्तर निकाय के विषय में होना चाहिए और व्यापक होना चाहिएं। यदि ऐसा पाया जाता है तो निकाय अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य की श्रेणी में आएगा । दूसरी ओर जब नियंत्रण केवल विनियामक है, चाहे वह कानून के तहत हो या अन्यथा, तब निकाय राज्य के अंतर्गत नहीं आएगा।

माननीय केरल उच्च न्यायालय ने एम॰ पी॰ वर्गीस बनाम् महात्मा गाँधी यूनिवर्सिटी मामले में अभिनिर्धारित किया कि आरटीआई अधिनियम की प्रयोज्यता भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य की परिभाषा के अंतर्गत आने वाले निकायों तक ही सीमित नहीं है।


लोक प्राधिकारी की परिभाषा अनुच्छेद 12 की तुलना में अत्यंत व्यापक अर्थ लिए हुए हैं। अनुच्छेद 12 के तहत राज्य की परिभाषा मुख्य रूप से अदालतों के माध्यम से मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के संबंध में है जबकि आरटीआई अधिनियम का उद्देश्य भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में तहत मान्यता प्राप्त सूचना के अधिकार को प्रभावी बनाने हेतु युक्तियुक्त ढांचा प्रदान करना है।

कृषक भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड बनाम रमेशचन्द्र के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि एक निकाय जो न तो अनुच्छेद 12 के प्रयोजनों के लिए राज्य है और न ही संविधान के अनुच्छेद 226 के प्रयोजन के लिए सार्वजनिक कार्यों का निर्वहन करता है, वह भी आरटीआई अधिनियम की धारा 2(h)(d)(i) के अंतर्गत लोक प्राधिकरण के अर्थ में हो सकता है।


विचारण करने योग्य यह बात भी है कि जैसे अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य शब्द के निर्वचन हेतु प्रमुख कसौटियों में गहन और व्यापक नियंत्रण को देखा जाता है जबकि आरटीआई अधिनियम के संदर्भ में ऐसी कोई योग्यता नहीं है

आरटीआई की धारा-2(h) के अंतर्गत लोक प्राधिकारी :  एक अवलोकन कहने का तात्पर्य यह है कि थोड़ी सी सूचना से प्रज्ञा नहीं आ सकती। सूचना तो एक साधन है, साध्य तो जीवन है अत: सूचना का निर्विघ्न रूप से प्रसारित होना आवश्यक है। सूचना, ज्ञान का आधार है, जो विचारों को जगाता है और बिना विचार के अभिव्यक्ति संभव नहीं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आज के लोकतांत्रिक देशों का गतिमान मुद्दा है।    सूचना लोकतंत्र की मुद्रा होती है एवं किसी भी जीवंत सभ्य समाज के उद्भव और विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।"  अतः सूचना को लोकतांत्रिक समाज के लिए ऑक्सीजन की संज्ञा दी जा सकती है। भारतीय लोकतंत्र को मज़बूत करने और शासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से भारतीय संसद ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 लागू किया।  सूचना का अधिकार अधिनियम लोक सूचना प्राधिकारी को अधिनियम के क्रियान्वयन की धूरी बनाते हुए, उसके पास उपलब्ध सूचना तक पहुँच का अधिकार प्रदान करता है। यह अधिनियम केवल लोक प्राधिकारी पर लागू होता है इसलिए लोक प्राधिकारी की अवधारणा को समझना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 2(h) के अनुसार :-              लोक प्राधिकारी" से, – (a) संविधान द्वारा या उसके अधीन ;  (b) संसद द्वारा बनाई गई किसी अन्य विधि द्वारा ;  (c) राज्य विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी अन्य विधि द्वारा ;  (d) समुचित सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना या किये गए आदेश द्वारा, स्थापित या गठित कोई प्राधिकारी या निकाय या स्वायत सरकारी संस्था अभिप्रेत है, और इसके अंतर्गत, –  (i) कोई ऐसा निकाय है जो समुचित सरकार के स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन, या उसके द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा सारभूत रूप से वित्तपोषित है   ii) कोई ऐसा गैर सरकारी संगठन है जो समुचित सरकार द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा सारभूत रूप से वित्तपोषित है ;  आरटीआई अधिनियम के अधिनियमित होने से पहले राज्य को संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत परिभाषित किया गया,जो कि भाग तीन (मौलिक अधिकार ) का हिस्सा है। मौलिक अधिकारों की प्रयोज्यता के लिए राज्य को परिभाषित करना आवश्यक था, जिससे अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार तय किया जा सके। अब मुख्य प्रश्न यह उठता है कि क्या संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत 'राज्य' और आरटीआई अधिनियम के तहत परिभाषित 'लोक प्राधिकारी' समानार्थी है ?    प्रदीप कुमार विश्वास बनाम् इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ केमिकल बायोलोजी (सीएसआईआर केस) के मामले में सात न्यायाधीशों की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य की परिभाषा कैसे तय हो का अभिनिश्चय किया ।  यह अभिनिर्धारित किया गया कि प्रत्येक मामले में यह सवाल किया जाना चाहिए कि क्या संचयी तथ्यों के प्रकाश में, यह स्थापित होता है कि निकाय :  • आर्थिक रूप से  • कार्यात्मक रूप से  • प्रशासनिक रूप से    सरकार के नियंत्रण में या उसके प्रभुत्व में है | इस तरह का नियंत्रण प्रश्नोत्तर निकाय के विषय में होना चाहिए और व्यापक होना चाहिएं। यदि ऐसा पाया जाता है तो निकाय अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य की श्रेणी में आएगा । दूसरी ओर जब नियंत्रण केवल विनियामक है, चाहे वह कानून के तहत हो या अन्यथा, तब निकाय राज्य के अंतर्गत नहीं आएगा।  माननीय केरल उच्च न्यायालय ने एम॰ पी॰ वर्गीस बनाम् महात्मा गाँधी यूनिवर्सिटी मामले में अभिनिर्धारित किया कि आरटीआई अधिनियम की प्रयोज्यता भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य की परिभाषा के अंतर्गत आने वाले निकायों तक ही सीमित नहीं है।    लोक प्राधिकारी की परिभाषा अनुच्छेद 12 की तुलना में अत्यंत व्यापक अर्थ लिए हुए हैं। अनुच्छेद 12 के तहत राज्य की परिभाषा मुख्य रूप से अदालतों के माध्यम से मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के संबंध में है जबकि आरटीआई अधिनियम का उद्देश्य भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में तहत मान्यता प्राप्त सूचना के अधिकार को प्रभावी बनाने हेतु युक्तियुक्त ढांचा प्रदान करना है।  कृषक भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड बनाम रमेशचन्द्र के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि एक निकाय जो न तो अनुच्छेद 12 के प्रयोजनों के लिए राज्य है और न ही संविधान के अनुच्छेद 226 के प्रयोजन के लिए सार्वजनिक कार्यों का निर्वहन करता है, वह भी आरटीआई अधिनियम की धारा 2(h)(d)(i) के अंतर्गत लोक प्राधिकरण के अर्थ में हो सकता है।    विचारण करने योग्य यह बात भी है कि जैसे अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य शब्द के निर्वचन हेतु प्रमुख कसौटियों में गहन और व्यापक नियंत्रण को देखा जाता है जबकि आरटीआई अधिनियम के संदर्भ में ऐसी कोई योग्यता नहीं है    Public Authority under Section-2(h) of RTI:  An Overview   That is to say, wisdom cannot come from a little information. Information is a means, an end is life, so it is necessary to disseminate information smoothly. Information is the basis of knowledge, which generates ideas and without thought expression is not possible. Freedom of expression is a dynamic issue in today's democratic countries.    Information is the currency of democracy and plays an important role in the growth and development of any vibrant civilized society.  Therefore, information can be termed as oxygen for a democratic society. In order to strengthen Indian democracy and to bring transparency in governance, the Indian Parliament enacted the Right to Information Act, 2005.  The Right to Information Act confers on the Public Information Authority the right to access the information available with it, making it the driving force behind the implementation of the Act. This act is applicable only to public authority, hence it becomes even more important to understand the concept of public authority. According to section 2(h) of the Right to Information Act, 2005 :-              "public authority" means,— (a) by or under the Constitution;  (b) by any other law made by Parliament;  (c) by any other law made by the State Legislature;  (d) any authority or body or autonomous government institution established or constituted by notification issued or order made by the appropriate Government, and includes,—  (i) any body which is owned, controlled, or substantially financed by funds provided directly or indirectly by the appropriate Government  ii) any non-governmental organization substantially financed by funds made available directly or indirectly by the appropriate Government;  Before the enactment of the RTI Act, the state was defined under Article 12 of the Constitution, which is part of Part III (Fundamental Rights). It was necessary to define the State for the applicability of the Fundamental Rights, so that the jurisdiction of the Supreme Court under Article 32 could be fixed. Now the main question arises whether 'State' under Article 12 of the Constitution and 'Public Authority' as defined under the RTI Act are synonymous?    In Pradeep Kumar Vishwas vs Indian Institute of Chemical Biology (CSIR case), a seven-judge bench decided how to define a state under Article 12 of the Constitution.  It was held that in each case it should be questioned whether in the light of the cumulative facts, it is established that the body :  • Financially  • Functionally  • Administratively    is under the control or dominion of the government. Such control should be subject to the Q&A body and should be comprehensive. If this is found then the body will come under the category of State under Article 12. On the other hand when the control is only regulatory, whether under law or otherwise, then the body will not fall under the state.  The Hon'ble High Court of Kerala in M. P. Varghese Vs. Mahatma Gandhi University held that the applicability of the RTI Act is not limited to the bodies falling within the definition of State under Article 12 of the Constitution of India.    The definition of public authority has a much wider meaning than in Article 12. The definition of the State under Article 12 is primarily with respect to the enforcement of Fundamental Rights through the courts while the object of the RTI Act is to provide a reasonable framework for giving effect to the Right to Information recognized under Article 19 of the Constitution of India.  In the case of Krishak Bharti Co-operative Ltd. Vs. Ramesh Chandra, it was held that a body which is neither a State for the purposes of Article 12 nor for the purposes of Article 226 of the Constitution to discharge public functions, is also under the provisions of the RTI Act. may have the meaning of a public authority under section 2(h)(d)(i).    It is also worth considering that as under Article 12, deep and comprehensive control is seen in the key criteria for the interpretation of the word State, whereas there is no such qualification in the context of RTI Act.


Public Authority under Section-2(h) of RTI: 

An Overview


That is to say, wisdom cannot come from a little information. Information is a means, an end is life, so it is necessary to disseminate information smoothly. Information is the basis of knowledge, which generates ideas and without thought expression is not possible. Freedom of expression is a dynamic issue in today's democratic countries.


Information is the currency of democracy and plays an important role in the growth and development of any vibrant civilized society.

Therefore, information can be termed as oxygen for a democratic society. In order to strengthen Indian democracy and to bring transparency in governance, the Indian Parliament enacted the Right to Information Act, 2005.

The Right to Information Act confers on the Public Information Authority the right to access the information available with it, making it the driving force behind the implementation of the Act. This act is applicable only to public authority, hence it becomes even more important to understand the concept of public authority. According to section 2(h) of the Right to Information Act, 2005 :-


          "public authority" means,—

(a) by or under the Constitution;

(b) by any other law made by Parliament;

(c) by any other law made by the State Legislature;

(d) any authority or body or autonomous government institution established or constituted by notification issued or order made by the appropriate Government, and includes,—

(i) any body which is owned, controlled, or substantially financed by funds provided directly or indirectly by the appropriate Government

ii) any non-governmental organization substantially financed by funds made available directly or indirectly by the appropriate Government;

Before the enactment of the RTI Act, the state was defined under Article 12 of the Constitution, which is part of Part III (Fundamental Rights). It was necessary to define the State for the applicability of the Fundamental Rights, so that the jurisdiction of the Supreme Court under Article 32 could be fixed. Now the main question arises whether 'State' under Article 12 of the Constitution and 'Public Authority' as defined under the RTI Act are synonymous?


In Pradeep Kumar Vishwas vs Indian Institute of Chemical Biology (CSIR case), a seven-judge bench decided how to define a state under Article 12 of the Constitution.

It was held that in each case it should be questioned whether in the light of the cumulative facts, it is established that the body :

• Financially

• Functionally

• Administratively


is under the control or dominion of the government. Such control should be subject to the Q&A body and should be comprehensive. If this is found then the body will come under the category of State under Article 12. On the other hand when the control is only regulatory, whether under law or otherwise, then the body will not fall under the state.

The Hon'ble High Court of Kerala in M. P. Varghese Vs. Mahatma Gandhi University held that the applicability of the RTI Act is not limited to the bodies falling within the definition of State under Article 12 of the Constitution of India.


The definition of public authority has a much wider meaning than in Article 12. The definition of the State under Article 12 is primarily with respect to the enforcement of Fundamental Rights through the courts while the object of the RTI Act is to provide a reasonable framework for giving effect to the Right to Information recognized under Article 19 of the Constitution of India.

In the case of Krishak Bharti Co-operative Ltd. Vs. Ramesh Chandra, it was held that a body which is neither a State for the purposes of Article 12 nor for the purposes of Article 226 of the Constitution to discharge public functions, is also under the provisions of the RTI Act. may have the meaning of a public authority under section 2(h)(d)(i).


It is also worth considering that as under Article 12, deep and comprehensive control is seen in the key criteria for the interpretation of the word State, whereas there is no such qualification in the context of RTI Act.

एक टिप्पणी भेजें

Please Select Embedded Mode To Show The Comment System.*

और नया पुराने